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हमारे देश में शिक्षा का अधिकार सब को दिया गया है फिर चाहे वो सबसे पिछड़ी जाती का हो या सबसे अगड़ी जाती का, चाहे अमीर हो या गरीब ये तो एक बहुत ही अच्छी बात है मगर जब इस मुद्दे पर हम गौर करेंगे तो हमें पता चलेगा की इस आरक्षण ने कितने ही विधार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है. एक उदाहरण के तौर पर अगर एक जनरल कोटे का विधार्थी राहुल जिसके पिता की मासिक वेतन 4000 रुपये है वही अमित जो की ओ.बी.सी. कोटे का विधार्थी है जिसके पिता की मासिक कमाई 5000 रुपये है.जब दोनों कोई फॉर्म (CPMT का) लेने जाते है तो पता चलता है की अमित को फॉर्म ३०० रूपये में मिलता है जिसके पिता की सैलेरी 5000 रूपये है ,वही वो फॉर्म राहुल को 850 रुपये का मिलता है जसके पिता की सैलेरी 4000 रूपये है. ऐसा आरक्षण किस काम का जिसमे जरूरतमंद की मदद न हो सके, इस तरह के आरक्षण से तो पढ़ने वाले बच्चे और पढ़ाने वाले अभिभावक दोनों का ही मनोबल टूटता है. क्या जरूरी है की हर एक जनरल कोटे का आदमी पैसे वाला हो या हर एस. सी, एस. टी. ओ.बी.सी कोटे का आदमी गरीब हो. अब एडमिशन की बात करे तो राहुल का नम्बर 100 है और अमित का 70 तो अमित का एडमिशन पहले होगा बाद में राहुल का. क्या राहुल ने मेहनत नहीं की क्या राहुल ने नहीं पढ़ा. अब इस आरक्षण से जात-पात का झगड़ा ही तो पैदा होगा आखिर राहुल के मन को तो ठेस पहुंचेगी ही अगर उसका एडमिशन नहीं होता और फिर उसके दिल में अमित के लिए क्या भावना होगी आप भी अच्छी तरह से समझते है. अब अगर यही राहुल और अमित किसी सेना और पुलिस की भर्ती में जाते है तो राहुल की लम्बाई ६ फीट से कम है तो उसकी भर्ती नहीं होगी दूसरी तरफ अमित 6 फीट से बहुत कम लम्बा है फिर भी उसको सेना या पुलिस में जगह मिल जाती है अब राहुल अमित से कम लम्बा है तो इसमें उसकी क्या गलती. मैंने तो एक साधारण और आम बोलचाल की भाषा में छोटा सा उदहारण दिया है पूरी कहानी तो आप सब भी अच्छी तरह से जानते ही है. मेरा मानना है है की अगर सरकार आरक्षण देना ही चाहती है तो ऐसे तरीके से काम किया जाये की सभी को उनका हक़ बराबर-बराबर मिले जैसे की फॉर्म की कीमत बराबर हो, सभी का एडमिशन बराबर रैंक से हो अब अगर जो बच्चा पढ़ने में अच्छा होगा उसका एडमिशन तो होगा ही, अब अगर वो गरीब है तो एक स्कालर्शिप दी जाये की जरूरतमंद बच्चे को मदद मिले, सेना पुलिस में भर्ती का मानक एक समान होना चाहिए. आरक्षण ऐसा नहीं होना चाहिए की दो अलग-अलग जाती आपस में लड़ जाये. इंसान पैसे से पीछे हो सकता है लेकिन ज्ञान से नहीं अगर कोई बच्चा पढना चाहता है तो सभी बच्चे एक सामान मेहनत करेंगे. अब क्या ओ. बी. सी. वाले बच्चो का दिमाग जनरल वाले बच्चो से कमजोर तो होगा नहीं तो फिर परीक्षा में पाने वाले अंक पे आरक्षण क्यों, सेना की भर्ती में भी जो 6 फीट का हो उसकी भारती हो फिर चाहे वो जनरल कोटे का हो या फिर अदर कास्ट का. मगर वर्तमान आरक्षण तो मुझे सिर्फ जात-पात का बंटवारा करता हुआ ही प्रतीत होता है .
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