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“7” साल पहले (आत्मकथा)

बेवफ़ाई
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हमेशा की तरह आज भी मेरे दिल में बहुत तकलीफ थी सोचा कोई ग़ज़ल लिखूं मगर अफ़सोस शब्द धोखा दे रहे थे….. फिर सोचा चादर ओढ़ के सो जाऊ तो चादर कांटो की तरह चुभ रहे थे और कह रहे थे की लेटने से दर्द कम नहीं होगा बल्कि और बढेगा…दिल के दर्द दिल से बाहर निकलने को बेचैन थे….फिर मैंने सोचा की अगर आज मैंने कुछ भी न लिखा तो मुझे मेरी ही लेखनी पर शक हो जाएगा,……..अब जब बात लेखनी की आ गयी तो फिर क्या था मैंने उठाई अपनी 7 साल पुरानी मोटी सी कापी, अपनी लकी पेन (इस पेन की भी एक कहानी है जो मै कहानी के बीच में बताऊंगा इस पेन से मै केवल 1 लाइन लिखता हूँ.)  और शुरू हो गया…. फिर भी रह-रह कर यही सोच रहा था की आखिर क्या लिखूं लिखना भी तो नहीं आता,ब्लॉग पर इतने बड़े-बड़े धुरंधर है की मेरी लेखनी के परखच्चे उड़ जायेंगे…..अंत में मैंने फैसला किया की आज मै अपनी कहानी लिखूंगा और बताऊंगा की आखिर इतनी दर्द से भरी कवितायें क्यों लिखता हूँ क्यों कभी खुशियों की झलक मेरी रचनाओं में नहीं होती और अपने ब्लोगरों को उस कहानी  से रूबरू करूँगा लेकिन दिल में बहुत डर था की कही मेरी कहानी भी आपको समझ न आई तो ये भी एक तकलीफ होगी जो भूले से न भूलेगी….मगर अपने आदरणीय ब्लोगरों का नाम लेते हुए कापी  पर पेन चला दिया…………..
  

मै आकाश तिवारी (त्रिपाठी)…मै बचपन से ही सुन्दर,लम्बा,और देखने में आकर्षक था….बचपन में किसी बिमारी की वजह से डाक्टरों ने मेरे घर वालों को कह दिया था की ये लड़का कभी पढ़ नहीं पायेगा इसका दिमाग कमजोर हो गया है… मगर बिमारी के दो सालों के बाद मेरी मम्मी ने मुझे पढ़ाने का फैसला किया और एक संस्कृत विद्यालय में मेरा दाखिला करवाया और दिन रात मेरे साथ मेहनत किया गया……..जबकि मेरी मम्मी को कुछ भी नहीं आता था सिर्फ हाँ में हाँ मिलाती थी पापा के पास इतना वक्त तो होता नहीं था की वो बैठकर मुझे पढ़ायें…..मुझे भी पढने में बहुत मजा आता था,मम्मी की मेहनत सफल हुई और मै कक्षा में प्रथम स्थान आया और मै फिर कभी दूसरे स्थान पर नहीं आया,..जहाँ भी रहता था लीडर बन कर…. मै भले ही किसी को न जानू मगर सभी मुझे जानते थे और आज भी वही स्थिति बरकरार है आज भी लोग रस्ते में मिलते है और कहते है “और आकाश भाई क्या हाल है क्या हो रहा है”और मै तो यही सोचता रहता हूँ की ये कौन है और अगर जानता हु तो फिर नाम तो बिलकुल भी याद नहीं रहता है.

साल 2003  था और मै कक्षा आठ पास कर चुका था और बहुत ही ख़ुशी के साथ गर्मी की छुट्टी मन रहा था शायद मै बहुत खुश था क्योंकि मै अब बड़ी कक्षा में जा रहा था मोटी किताबें पढने को मिलेगी और कोचिंग जाने को मिलेगा….. मै गणित में तेज़ था मगर अंग्रेजी का नाम सुनते ही मेरे माथे पर पसीना आ जाता था…संस्कृत स्कूल से पढने के कारण मेरी अंग्रेजी कमजोर थी….अरे मेरी हालत तो ये थी की अगर मुझे अपना पूरा नाम भी लिखना पड़े तो आकाश लिखने के बाद त्रिपाठी लिखने के लिए आइडेन्टिटी कार्ड देखना पड़ता था…. स्कूल में एडमिशन ले लिया और अब कोचिंग की बारी थी…. मेरे घर से कुछ ही दूरी पर एक कोचिंग थी. जिसके बारे में मुझे कई लोगों ने सलाह भी दी थी….. मै वहा गया सोचा चलते हैं ट्रायल देकर देखते हैं…. मै कोचिंग पहुंचा और कोचिंग के मैनेजर के सामने जा बैठा…. मुझे उसने देखा तो मुझे लगा ये मुझे काफी बुद्धिमान समझ रहा है बाते भी मै काफी अच्छे तरीके से कर रहा था….. सब बातें होने के बाद उसने एक फॉर्म मेरे कर कमलों पर रखा और कहा प्लीज़ इसे भर दीजिये….. जैसे ही फॉर्म मेरे हाथों पे आया मेरे माथे पे पसीना आ गया फॉर्म तो अंग्रेजी में भरना था….तो चलो भैया किसी तरह इधर-उधर देखकर फॉर्म भर दिया….नाम, सब्जेक्ट भरने में तो नानी याद आ गयी ..हे ….भगवान् ….अंग्रेजी भी कितनी कठिन होती है जैसे अगर जिसको तैरना न आता हो उसे नदी में कुदा दिया जाए ठीक वैसी ही हालत मेरी थी….. सोच रहा था काश मुझे भी अंग्रेजी आती होती तो मै भी आज सबकी बैंड बजा देता…कोचिंग की सारी बातें तय हो गयी….शाम का समय भी मुकम्मल हुआ..फिर मै वहा से उठा और घर की तरफ चलने के लिए बढ़ा तो मुझे लगा की कोचिंग के लोग मुझे बहुत गौर से देख रहे थे शायद उस समय मै वहा के लडको से अलग लग रहा था इसीलिए…. खैर अब मै घर वापस लौट रहा था और यही सोच रहा था की कैसे टीचर होंगे,स्टुडेंट होंगे,कैसी पढ़ाई होगी हजार तरह के सवाल मन में उठ रहे थे…..और एक डर था जो मेरे कोचिंग के लीडर बनने में रोड़ा बन सकता था वो थी भयावह राक्षसी अंग्रेजी…..घर आया तो ख़ुशी-ख़ुशी कोचिंग की बात अपने बड़े भाई और मम्मी को बताया और अंग्रेजी को निशाना बनाकर उसका खूब मजाक उड़ाया…..(मेरी अंग्रेजी कमजोर थी या फिर अगर मै कभी फेल भी हो जाता तो कभी कोई नाराज न होता क्योंकि मेरी बिमारी की वजह से मेरे उप्पर पढने का कभी भी दबाव नहीं था.लेकिन मै कभी भी फेल नहीं हुआ था हाँ मगर ये अंग्रेजी ने तो सारा खेल ही बगड़ दिया था..)हम सभी बहुत खुश थे शायद मेरी मम्मी सब से ज्यादा खुश थी इसीलिए वो रो पड़ी क्योंकि उन्हें लग रहा था की मेरा जो बेटा शायद अनपढ़ रह जाता आज वो बड़ी क्लास में जा रहा है………………….अब रात हो चुकी थी मै अगले दिन के लिए बहुत उत्सुक था शायद उस रात को मुझे ठीक से नींद भी नहीं आई थी..सुबह जल्दी उठा और इधर-उधर बेचैन होकर घूम रहा था और घडी की सूइयों को लगातार निहार रहा था,मेरे भाई और मेरी मम्मी मेरे इस तरह के व्यवहार पर हस रहे थे,शायद वो भी खुश थे……आख़िरकार घडी ने 3 बजा ही दिया मै जल्दी -जल्दी तैयार होने लगा खूब अच्छे से तैयार हुआ परफ्यूम भी छिड़क लिया….शायद उस समय मै बहुत अच्छा लग रहा था…. कंधे पर बैग टांगा,.. भाई और मम्मी का पैर छुआ और पैदल ही कोचिंग चल दिया और रास्ते भर यही सोंचता रहा कैसे टीचर होंगे,..कैसा माहौल होगा,..क्या मै वहा भी अपनी छाप छोड़ पाऊंगा की नहीं,..यही सोंच रहा था की कोचिंग आ गयी…. सबको नमस्ते किया और अपना क्लास रूम पूंछते हुए आगे बढ़ा…….”आज वो दिन बीते हुए पूरे 7  साल हो गए पूरे 7  साल फिर भी एक-एक लम्हा ऐसे याद है जैसे कल की ही बात है”…………….क्लास के दरवाजे के गेट के परदे को हटाते हुए जैसे ही मै अन्दर घुसा सबने मुझे पलटते हुए बहुत गौर से देखा उस क्लास का शायद मै ही सबसे स्मार्ट लड़का था…………मैंने भी सबको देखा मगर न जाने किस पर मेरी नज़र जाकर टिक गयी,..दिल में एक अजीब लहर दौड़ गयी….मेरे दिल,शरीर मन को न जाने क्या हो गया था कुछ क्षण के लिए मै वही खड़ा रह गया फिर…………………………

 

 

ये मेरी ज़िन्दगी की वास्तविक कहानी है आशा करता हूँ की आपको पसंद आई होगी…अगला भाग बहुत जल्द प्रस्तुत करूँगा……..आपका
आकाश तिवारी

 

 

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