- 94 Posts
- 1979 Comments
रोज ज़हर बस जरा-जरा दिया करते हैं
पहले करते थे नफरत आज वो भी नहीं किया करते हैं,
प्यार के बादल तो बरसे नहीं गम के बरस दिया करते हैं,
कोई पूंछे उनसे जाकर क्यों,
रोज ज़हर बस जरा-जरा दिया करते हैं..
फूल बिछाए हमने उनकी राहों में वो कांटे बिछाया करते हैं,
कभी ख्वाहिशें दिल की जो बताया वो अनसुना किया करते हैं,
कोई पूंछे उनसे जाकर क्यों,
रोज ज़हर बस जरा-जरा दिया करते हैं..
मौत के लिए बददुआ ही काफी थी आज खंज़र उठा लिया करते हैं,
मनहूसियत है मेरे प्यार में कितनी आज सबको बता दिया करते हैं,
कोई पूंछे उनसे जाकर क्यों,
रोज ज़हर बस जरा-जरा दिया करते हैं..
रोकता हूँ आंसू निगाहों में फिर भी गिर जाया करते हैं,
“आकाश” जानता है उनको उनकी बेवफाई पर सबसे छुपाया करते हैं,
कोई पूंछे उनसे जाकर क्यों,
रोज ज़हर बस जरा-जरा दिया करते हैं..
आशा करता हूँ की आपको मेरी ये ग़ज़ल पसंद आई होगी.बहुत जल्द एक नयी ग़ज़ल के साथ फिर आऊंगा.
आपका
आकाश तिवारी
Read Comments