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प्यार और समाज ––“Valentine Contest”

बेवफ़ाई
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निवेदन

 

 
प्यार क्या होता है , प्यार क्यूँ होता है, प्यार कैसे होता है, प्यार कब होता है, प्यार किसको, किसको होता है किसको नहीं होता है…ऐसे न जाने कितने सवालों पर जागरण मंच पे इस वक्त लेख भरे पड़े है…भले ही प्रेम कलम की श्याही का मुहताज नहीं..भले ही प्रेम का वर्णन नहीं किया जा सकता मगर जागरण मंच पर मौजूद बड़े-बड़े अनुभवी लेखकों द्वारा जागरण मंच पर प्रेम की बहुत ही खूबसूरत व्याख्या की गयी है….निःसंदेह सबने अपने विचारों द्वारा सब कुछ सही ही लिखा है…आज मै भी अपने चिर-परिचित अंदाज से हटकर प्यार पे कुछ लिखने जा रहा हूँ, मैंने अपने जीवन में जो भी देखा, जो भी मेरे जीवन में गुजरा उन सबसे प्राप्त छोटी सी जानकारी आज पोस्ट करने जा रहा हूँ…उम्मीद करता हूँ की आप पूरा लेख अंत तक पढेंगे….उसके बाद इस लेख पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रतिक्रिया अवश्य देंगे….

  

आकाश तिवारी

 

 

प्यार कितना छोटा शब्द है मगर इस वक्त पूरी दुनिया में इसी शब्द के चर्चे है या यूँ कहे की इन दिनों कुछ ज्यादा ही चर्चा का विषय है प्यार…प्यार ढाई अक्षरों से बना एक ऐसा शब्द है जो अधूरा है और जब शब्द ही अधूरा है तो प्यार कैसे पूरा हो सकता है…प्यार कोई विज्ञान की खोज नहीं, या फिर मानव सभ्यता द्वारा बनाया गया कोई नियम क़ानून नहीं…जिस तरह जीवन सत्य है उसी तरह जीवन में प्यार भी एक सत्य है…हर इन्सान के जीवन में प्यार के अलग-अलग मायने और महत्व है…किसी को संगीत बहुत प्यारा लगता है तो किसी को संगीत सुनना भी पसंद नहीं होता…ऐसा क्यों? तो इसका जवाब ही तो प्यार है…किसी को मशीन आदि  देखकर बहुत अच्छा लगता है और उसकी जानकारी न होते हुए भी वो उसको छूने का प्रयास करता है, जबकि किसी को मशीन सिर्फ एक मशीनी पुर्जा नजर आता है जो की किसी कार्य विशेष के लिए बना होता है…ऐसा क्यों? तो इसका जवाब ही तो प्यार है…किसी को कोई पहली नजर में ही बहुत करीबी लगने लगता है और दुबारा देखने की लालशा पैदा हो जाती है और वो इंसान जब उसको बार-बार देखता है तो ये लगाव और गहरा जाता है, मगर और किसी दूसरे इंसान को वही पसंद भी नहीं आता ऐसा क्यों? तो इसका जवाब ही तो प्यार है… मै इनसब बातों को बहुत ही अच्छे से बताता हूँ…

 

 

संगीत पसंद करना…सुनना अलग बात है मगर संगीत से प्यार अलग बात है…जिसको संगीत से प्यार है वो संगीत के लिए कुछ भी कर सकता है…बड़े-बड़े संगीतकारों का ही उदहारण ले लीजिये…संगीत से बिना प्यार के वो इतने बड़े संगीतकार बन सकते थे…और यही अगर प्यार न होकर संगीत के प्रति आकर्षण होता तो रास्ते में मिलने वाली कठिनाइयों को देखकर वो पीछे हट जाते और अगर कुछ बन भी जाते तो संगीत के क्षेत्र में कुछ विशेष न कर पाते…हर कोई वैज्ञानिक क्यों नहीं बन पाता हर कोई विज्ञान के क्षेत्र में कोई खोज क्यों नहीं कर पाता आजकल तो बहुत से इंजीनियर बन रहे है क्या हर कोई बड़ा मुकाम हासिल कर पाता है,ऐसा क्यों सभी एक ही किताब पढ़कर आगे आते है…यही आती है प्रेम की बात जिसको मशीनों से प्यार है वो ही मशीन की भाषा समझ सकता है पढने वालों के लिए तो मशीन एक निर्जीव वस्तु है मगर जिसको मशीन से प्यार होता है वही आविष्कार करता है और अपना एक मुकाम बनाता है…आजकल हर कोई किसी न किसी को प्यार करता है…साथ जीने मरने की कसमे खाते है लेकिन जब परिवार समाज से बंधे प्रेमी जोड़े पर दबाव पड़ता है तब प्यार और आकर्षण स्पष्ट हो जाता है…अगर किसी के लिए दिल में प्यार आ ही गया तो फिर जाने का सवाल ही नहीं उठता…जो सच्चे प्रेमी होते है वो सारी दीवारे तोड़ देते है मगर जिसको प्यार ही नहीं वो दबाव में आकर बिखर जाता है…..

 

 

प्यार की ताकत ही है जिसने हर क्षेत्र में किसी एक व्यक्ति का नाम दर्ज कराया है…जिस तरह से अच्छे संगीतकार कम मिलेंगे, अच्छे वैज्ञानिक कम मिलेंगे, अच्छे बिजनेसमैन कम मिलेंगे, उसी तरह सच्चे प्रेमी जोड़े भी कम मिलेंगे….जिसका प्यार सच्चा और मजबूत होगा वही अपनी मंजिल हासिल करेगा…जिस तरह से आग में तपकर सोना खरा बनता है उसी तरह से ही समाज, परिवार, विषय, परिस्थितियां, आदि कठिनाइयों से लड़कर ही जो मिलन होता है वही सच्चा प्यार होता है…ऐसे मिलने वाले प्यार ही एक दुसरे की अहमियत को समझते है….बाकी सब आकर्षण है….

 

 

मै समाज से नफरत करता हूँ, मगर क्यों?  तो इसका जवाब है समाज का दोगला चरित्र…हम हिन्दुस्तानी है हमें बचपन से ही प्यार के विषय में बहुत ही गहराई से पढाया जाता है…जिन चीजों को देखते, पढ़ते हुए हम बड़े होते है और जब उसको खुद पर लागू करते है तो हम बुरे बन जाते है…अगर हम भगवान कृष्ण और राधा के प्रेम की बात करे, तो क्या भगवान् कृष्ण को राधा के सिवा और किसी से प्रेम नहीं हो सकता था ..आखिर क्यों भगवान् कृष्ण का पूरा जीवन राधा की इर्द गिर्द था…तो समाज तपाक से उत्तर देगा की कृष्ण में भगवान् विष्णु के कण थे और राधा में माँ लक्ष्मी के…तो फिर फाड़ दो वो किताबे जिसमे हमारे पूर्वजों ने लिखा है की कण-कण में भगवान् है…हर मनुष्य के भीतर भगवान् है ऐसे उपदेश, ऐसे प्रवचन देना बंद कर देना चाहिए इन समाज के ठेकेदारों को क्योंकि जब मनुष्य में भगवान् है तो भगवान विष्णु का माता पार्वती से और भगवान शिव का माता लक्ष्मी से सम्बन्ध कैसे जुड़ सकता है…रिश्ते आसमान से अगर बनके आता है तो ये समाज के ठेकेदार कौन होते है इन रिश्तों को तोड़ने वाले…मै यहाँ खुद को भगवान नहीं कह रहा बस वही कह रहा हूँ जो बचपन से पढता आया हूँ…जब एक लड़का किसी लड़की से बेइंतहा मुहब्बत करने लगता है तो क्या इन समाज के लोगो के दिल में ये नहीं आता की शायद इन दोनों की जोड़ी राधा -कृष्ण जैसी है….क्या ऐसा मुमकिन नहीं की हमारे अन्दर का ईश्वर जब अपनी अर्धांग्नी के करीब आ जाते है तो उनको पाने का प्रयास करते है, अगर हमारे अन्दर ईश्वर का कण है तो जाहिर सी बात है की हमारा झुकाव हमारे ही किसी अपने पर होगा…भगवान् कृष्ण के लिए माँ लक्ष्मी ही इस धरती पर आई थी न की माँ पार्वती… मगर जब आसमान से बने सच्चे जोड़ो का मिलन होने वाला होता है तो  इन समाज के ठेकेदारों की वजह से इनको अलग होना पड़ता है…मै तो कहता हूँ की भारत में जब प्यार करना इतना ही गलत है तो राधा-कृष्ण की पूजा बंद कर दी जाए….फिर बचपन से ये न पढाया जाए की सभी मनुष्य में ईश्वर है…राधा कृष्ण, की कहानिया या फिर ये कहना की सब की जोड़ी उप्पर आसमान से बनके आती है..क्योंकि इनका ही बुरा प्रभाव हमारे समाज में है और जिसका बुरा प्रभाव पड़े उसको तुरंत खत्म कर देना चाहए…

 

 

क्या मैंने राखी से जानबूझ कर प्यार किया था…क्या राखी ने मुझको जानबूझकर प्यार किया था? नहीं…जब हम दोनों एक दुसरे से सच्चा प्यार करते थे तो क्या गलत करते थे…घर परिवार सबकी इज्जत रखते हुए हम दोनों पढ़ते, लिखते आगे बढ़ रहे थे…प्यार करने के बाद हम दोनों का आत्मविश्वास कई गुना बढ़ गया था एक दुसरे के लिए कुछ कर गुजरे की चाह पैदा हो गयी थी…एक अंग्रेजी का गवार आर्यन जिसको त्रिपाठी की स्पेलिंग नहीं आती थी दो महीनो में अंग्रेजी में टाप करना…हर साल रिजल्ट का बेहतरीन आना…ये सब क्या था…प्यार था तो कुछ भी तो गलत नहीं हो रहा था…मगर राखी के पिता समाज के उन ठेकेदारों में से थे जो राधा कृष्ण की पूजा तो करते है…मन्दिर में दोनों की साथ में लगी मूर्तियों में अपने शीश तो झुकाते है मगर ये नहीं जानते की इनके बीच सम्बन्ध क्या था...हम दोनों ही पंडित थे और हर हिसाब से एक दुसरे के बराबर थे मगर फिर ऐसी क्या मजबूरी थी राखी के पिता को की वो हमारा प्यार अपना न सके….क्या मिला उनको राखी से मुझे अलग करके….यही है प्यार के प्रति समाज का दोगलापन…
मै नफरत करता हूँ ऐसे समाज से….

 

 

आकाश तिवारी 

 

 

मेरी कहानी का पहला और दूसरा भाग जरूर पढ़ें…

 

“आज रोज़ डे है”   ***जानू लौट आओ न ***  मेरी कहानी —– “Valentine Contest”–I

“आज प्रपोज़ डे है” ***जानू लौट आओ न *** मेरी कहानी – “Valentine Contest” –II

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