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कातिल बन गया……गज़ल

बेवफ़ाई
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हर दर्द को खत्म करने के लिए इक मरहम चाहिए था,

मरहम ही मेरा दर्द बन गया,

जिस-जिस को मैंने अपनाया वो ही मेरा कातिल बन गया…

 

 

मुसीबत की घडी में इक साथ चाहिए था,

आंसू छिपाने को इक दामन चाहिए था,

हर दामन में ही छेद निकल गया…

जिस-जिस को मैंने अपनाया वो ही मेरा कातिल बन गया…

 

 

परछाइयों की रात में इक छप्पर भी न मिला,

अपनों ने तो छोड़ा ही गैरों से भी गम मिला,

हर किसी से मै जख्म खाकर रह गया…

जिस-जिस को मैंने अपनाया वो ही मेरा कातिल बन गया…

 

 

मुहब्बत की राहों से गुजरने की चाह थी,

तन्हा था मै किसी से दिल लगाने की चाह थी,

हर ओर मेरा दिल टूटा और मै बेवफाओं से मिल गया…

जिस-जिस को मैंने अपनाया वो ही मेरा कातिल बन गया…

 

 

आशा करता हूँ की आपको मेरी ये ग़ज़ल पसंद आई होगी.बहुत जल्द एक नयी ग़ज़ल के साथ फिर आऊंगा.

आपका

 

आकाश तिवारी

 

 

 

आप सभी से अनुरोध है की मेरी कविताओं का इस्तेमाल अपने नाम पर कभी न करे क्योंकि ये कवितायेँ सिर्फ मेरी है और रजिस्टर्ड है.

 

 

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