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कभी-कभी इस दिल के टूटने पर इंसान किस कदर टूट जाता है और क्या कुछ कर गुजरता है अपने जीवन में बस उसी को दर्शाने कि कोशिश की है अपनी इस ग़ज़ल में..उम्मीद करता हूँ आपको जरुर पसंद आएगी..
आकाश तिवारी
उसने मेरे जख्मों को यूँ ही बेजार बना दिया,
मेरे अश्कों को अपने गले का हार बना दिया,
जब देखा सच्ची मुहब्बत पर उनकी यूँ बेरुखी.
तो मुहब्बत को हमने अपना रोजगार बना दिया….
किसी को अपनी दास्ताने आशिकी सुनाई हमने,
किसी का दर्द मयखाने में भुलाया हमने,
जब लोगों ने दर्द का हमें सरकार बना दिया.
तो मुहब्बत को हमने अपना रोजगार बना दिया….
कहीं बेदर्द ग़ज़लों की महफ़िल सजाई हमने,
कहीं बुझते चिराग में फिर से आग लगे हमने,
जब लोगों की तारीफों ने हमें कर्जदार बना दिया.
तो मुहब्बत को हमने अपना रोजगार बना दिया….
हर-पल हर-सफ़र था बस उसको ही चाहा हमने,
जो ख़्वाब थे ज़िन्दगी में रो-रोकर भुलाया हमने,
जब उसने कब्र को हमारा घरबार बना दिया,
तो मुहब्बत को हमने अपना रोजगार बना दिया….
आशा करता हूँ की आपको मेरी ये ग़ज़ल पसंद आई होगी.बहुत जल्द एक नयी ग़ज़ल के साथ फिर आऊंगा.
आपका
=आकाश तिवारी=
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