क्या हुआ अगर……गज़ल
रोक देती तू मुझे तो ये तमाशा शरेआम न होता,
ज़िद्दी तो मै ही था वरना कभी ये अंजाम न होता..
क्या हुआ अगर हमारी उमर छोटी ही थी,
क्या हुआ अगर लोगो ने ये बात सोची न थी.
मुहब्बत तो सोचा समझा कोई काम नही होता.
ज़िद्दी तो मै ही था वरना कभी ये अंजाम न होता..
क्या हुआ अगर दो दिलो में प्यार था बहुत,
क्या हुआ अगर एक-दूजे का इन्तेजार था बहुत.
समझते सब तो प्यार कभी बदनाम न होता.
ज़िद्दी तो मै ही था वरना कभी ये अंजाम न होता..
क्या हुआ अगर प्यार पर किसी की रजामंदी न थी,
क्या हुआ अगर हमारी सोच प्यार पर गन्दी न थी.
प्यार होता गलत तो राधाकृष्ण का नाम न होता.
ज़िद्दी तो मै ही था वरना कभी ये अंजाम न होता..
क्या हुआ अगर उस रोज हम मिले थे कहीं पर,
क्या हुआ अगर किसी ने हमें देखा था वहीँ पर.
प्यार करने वालों पर ज़ुल्म यूँ तमाम नही होता.
ज़िद्दी तो मै ही था वरना कभी ये अंजाम न होता..
रोक देती तू मुझे तो ये तमाशा शरेआम न होता..
रोक देती तू मुझे तो तमाशा ये शरेआम न होता,
ज़िद्दी तो मै ही था वरना कभी ये अंजाम न होता..
क्या हुआ अगर हमारी उमर छोटी ही थी,
क्या हुआ अगर लोगो ने ये बात सोची न थी.
मुहब्बत तो सोचा समझा कोई काम नही होता.
ज़िद्दी तो मै ही था वरना कभी ये अंजाम न होता..
क्या हुआ अगर दो दिलो में प्यार था बहुत,
क्या हुआ अगर एक-दूजे का इन्तेजार था बहुत.
समझते सब तो प्यार कभी बदनाम न होता.
ज़िद्दी तो मै ही था वरना कभी ये अंजाम न होता..
क्या हुआ अगर प्यार पर किसी की रजामंदी न थी,
क्या हुआ अगर हमारी सोच प्यार पर गन्दी न थी.
प्यार होता गलत तो राधाकृष्ण का नाम न होता.
ज़िद्दी तो मै ही था वरना कभी ये अंजाम न होता..
क्या हुआ अगर उस रोज हम मिले थे कहीं पर,
क्या हुआ अगर किसी ने हमें देखा था वहीँ पर.
प्यार करने वालों पर ज़ुल्म यूँ तमाम नही होता.
ज़िद्दी तो मै ही था वरना कभी ये अंजाम न होता..
रोक देती तू मुझे तो ये तमाशा शरेआम न होता..
आशा करता हूँ की आपको मेरी ये ग़ज़ल पसंद आई होगी.बहुत जल्द एक नयी ग़ज़ल के साथ फिर आऊंगा.
आपका
आकाश तिवारी
आप सभी से अनुरोध है की मेरी कविताओं का इस्तेमाल अपने नाम पर कभी न करे क्योंकि ये कवितायेँ सिर्फ मेरी है और रजिस्टर्ड है.
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